पैगंबर हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-के व्यवहार के विषय में कुछ शब्द: (पहला भाग)
पृथ्वी पर लगभग हर कोई आज पैगंबर मुहम्मद-शांति और अशीर्वाद हो उन पर- का चर्चा कर रहा है. लोग यह जानना चाहते हैं कि वास्तव में वह थे कौन? उनके उपदेश थेक्या? कुछ लोग को उनसे क्यों इतना प्यार है और कुछ लोगों को उनसे इतनी नफरत क्यों है? क्या वह अपने दावे पर खरा उतरे? क्या वह एक पवित्र आदमी थे? क्या वह परमेश्वर की ओर से नबी (इश्वदुत) बनाए गए थे? इस आदमी के बारे में सच क्या है जिनका नाम मुहम्मद है?
हम सत्य की खोज कैसे कर सकते हैं? और क्या हम पूरी ईमानदारी के साथ सही परिनाम तक पहुँच सकते हैं?
हम यहाँ बहुत ही सरल ऐतिहासिक सबूतों और तथ्यों के साथ शुरू करते हैं, जिनको हजारों लोगों ने हम तक पहूँचाया है, जिनमें से कई तो उनको व्यक्तिगत रूप से जानते थे, और जो हम यहाँ उल्लेख करने जारहे हैं वे निम्नलिखित पुस्तकों, पांडुलिपियों, ग्रंथों और वास्तविक प्रत्यक्षदर्शी खातों पर आधारित हैं. और वे तथ्य और सबूतइतने अधिक हैं कि इस संदर्भ में हम उनकी गिनती भी नहीं कर सकतेहैं. लेकिन वे सभी के सभी अभी तक दोनों मुसलमानों और गैर मुसलमानों द्वारा सदियों बीत जाने के बाद भी मूल रूप में संरक्षित हैं.
उनका नाम मुहम्मद है वह अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब के पुत्र थे उनका जनम मक्का में(जीको अब सऊदी अरब कहा जाता है): वर्ष ५७० (ईसाई युग) में हुआ था और ६३३ इसवीं में "यसरब" सऊदी अरब के पवित्र मदीना में निधन हो गया:
क) उनके नाम:जब वह पैदा हुवे तो उनके दादाअब्दुल मुत्तलिब ने उनको मुहम्मद का नाम दिया. और इसका मतलब है " जिनकी बहुत प्रशंसा हो" या "एक सराहा हुवा मनुष्य" बाद में जिन लोगों ने जब उनको सच्चा और ईमानदार स्वभाव का पाया तो उनके द्वारा उनको "सिद्दीक़"(सच्चा) कहा जाने लगा, इसी तरह उनकी ईमानदारी की वजह से और सब के साथ हमेशा भरोसा कायम रखने और लोगों को जूं की तुं उनकी चीजें वापस देने के कारण उन्होंने "अल-अमीन"(विश्वसनीय) भी कहा जाता था. और जब जन-जातियों का एक दूसरे के खिलाफ संघर्ष होता था तो दोनों पक्ष लड़ाई के दौरान अपनी अपनी संपत्ति उनको सौंपते थे , भले ही वह उनके ही आदिवासियों के खिलाफ युद्ध करे, क्योंकि उन्हें पता था कि वह हमेशा लोगों की संपत्ति जूं की तुं वापस देते हैं और कभी भरोसा नहीं तोड़ते हैं चाहे जो भी होजाए. इन नामों से यही झलकता है कि उन के व्यक्तित्व में ईमानदारी, निष्ठा और विश्वसनीयता कुटकुट कर भरी थी और जन-जातियों के रिश्तेदारों के बीच सुलह के लिए उनके उत्साह और उनके उपदेश जाने और माने जाते थे.
उन्होंने अपने अनुयायियों को हमेशा (भाई बहन और अन्य करीबी रिश्तेदारों) के बीच रिश्ते के संबंधों को सम्मान देने का आदेश दिया.
यह बात जॉन की बाइबिल के अध्याय 14 और 16 में वर्णित भविष्यवाणी के साथ सही फिट बैठती है जिस में एक "सत्य की आत्मा" या "मुश्किल में काम आनेवाला" "अधिवक्ता" के आने की भविष्यवाणी की गई.
ख)वह हज़रत इस्माईल -शांति हो उनपर- के माध्यम से हज़रत इब्राहीम-शांति हो उनपर-के संतान में आते हैं, क्योंकि अरब की महान जनजाति कुरैश हज़रत इस्माईल -शांति हो उनपर- की संतान से फूटा हुआ एक शाखा था,जो उन दिनों मक्का के शासक थे, हो. और हज़रत मुहम्मद वंश धारा सीधा हज़रत इब्राहीम -शांति हो उनपर- से मिलता है, यह निश्चित रूप से इस बिंदु से देटोरोनोमी के (15:18 अध्याय) ओल्ड टैस्टमैंट (टोराह) की भविष्यवाणी के पूर्ति हो जाने की पुष्टि होती है.
के लिए बात कर सकता (18:15 अध्याय) भविष्यवाणी का कहना है कि वह मूसा की तरह एक नबी (ईश्दूत)होंगे जो अपने भाइयों की और से नुमाइंदा थे.
ग) वह सर्वशक्तिमान ईश्वर की आज्ञाओं का पालन बिल्कुल उसी तरह किये जैसा कि उनके महान दादा और पुराने समय के नबियों (ईश्दुतों) ने कियाथा, कुरान जो दूत गेब्रियल द्वारा मुहम्मद पर उतारा गया कहता है:
"قل تعالوا أتل ما حرم ربكم عليكم ألا تشركوا به شيئا وبالوالدين إحسانا ولا تقتلوا أولادكم من إملاق نحن نرزقكم وإياهم ولا تقربوا الفواحش ما ظهر منها وما بطن ولا تقتلوا النفس التي حرم الله إلا بالحق ذلكم وصاكم به لعلكم تعقلون (الأنعام: 151).
"कह दो: आओ, मैं तुम्हें सुनाऊँ कि तुम्हारे पालनहार ने तुम्हारे ऊपर क्या पाबंदियाँ लगाई है: यह कि किसी चीज़ को उसका साझीदार न ठहराओ और माँ-बाप के साथ सद्व्यवहार करो और निर्धनता के कारण अपनी संतान की हत्या न करो, हम तुम्हें भी रोज़ी देते हैं और उन्हें भी, अश्लील बातों के निकट न जाओ, चाहे वे खुली हुई हों या छिपी हुई हों, और किसी जीव की, जिसे अल्लाह ने आदरणीय ठहराया है, हत्या न करो, यह और बात है की हक़ के लिये ऐसा करना पड़े.ये बातें हैं जिनकी ताकीद उसने तुम्हें की है, शायद कि तुम बुद्धि से काम लो.
[पवित्र कुरान, अल-अनआम 6:151]
घ)मुहम्मद-शांति हो उन पर-पूरे जीवन भर सदा परमेश्वर की एकतापरविश्वासके प्रतिबद्ध रहे और उसके साथ किसी भी अन्य "देवताओं" को भागीदार नहीं बनाए. यहीविचारधाराओल्ड टैस्टमैंट में सब से पहला उपदेश है (देखये एक्सोडस अध्याय 20 और देयोटोरोनोमी अध्याय ५) और नई टैस्टमैंट (मार्क, अध्याय 12 कविता29).
ङ)मुहम्मद-शांति हो उन पर-अपने अनुयायियों को सर्वशक्तिमान अल्लाह के आदेश के पालन करने और अल्लाह के दूत गेब्रियल द्वारा उनपर उतारे गए आज्ञाओं की प्रतिबद्धता का आदेश दिया. पवित्र कुरान में अल्लाह कहता है:
إن الله يأمر بالعدل والإحسان وإيتاء ذي القربى وينهى عن الفحشاء والمنكر والبغي يعظكم لعلكم تذكرون (النحل:90)
निश्चित रूप से, अल्लाह आदेश देता है पूर्ण न्याय का और अच्छे बर्ताव का और रिश्तेदारों को मदद देने का और वह अश्लीलता , बुराई और अत्याचार से तुम्हें रोकता है.(पवित्र कुराना, अन-नहल:९०)
च) मुहम्मद-शांति हो उन पर-कभी भी उनकी आदिवासियों के बीच फैली मूर्ति पूजन नहीं किया और न उन मूर्तियों के लिये झुका जिन्हेँ मानव हाथ निर्मित करता है.बावजूद इसके यही आदत उनके जनजाति के लोगों के बीच प्रचलित थी, उन्होंने अपने अनुयायियों को केवल एक भगवान (अल्लाह) के पूजा का आदेश दिया वही(अल्लाह) जोआदम, इब्राहीम, मूसा और सभी इश्दुतों का भगवान है-शांति हो उन सब पर- कुरान में है:
وما تفرق الذين أوتوا الكتاب إلا من بعد ما جاءتهم البينة وما أمروا إلا ليعبدوا الله مخلصين له الدين حنفاء ويقيموا الصلاة ويؤتوا الزكاة وذلك دين القيمة. (البينة: 4،5)
और वे लोग जिन्हें पुस्तक मिली थी(यहूदी और ईसाइ) विवाद नहीं किये लेकिन उनके पास स्पष्ट सबूत पहुँच जाने के बाद, और उन को तो यही आदेश मिला था कि केवल एक अल्लाह की पूजा करें और अपनी भक्ति को केवल अकेले उसी के लिए रखें और किसी की ओर न करें और नमाज़ पढ़ते रहें और दान दें: और वही सही धर्म है.
(पवित्र कुरान अल-बय्यिनाह:98:4-5)
वह आदमी के बनाए देवताओं या छवियों को कभी नहीं पूजे बल्कि वह सदा उन जटिलताओं और गिरावटों से नफरत करते रहे जो मूर्तिपूजा के कारण पनपते हैं.
छ) हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-हमेशा अधिक से अधिक अल्लाह के नाम का सम्मान और महानता करते थे, उन्हों ने कभी भी गौरव के लिये इस पद को प्रयोगनहीं किया, बल्कि वह अपने अनुयायियों को सीमा से बाहर अपनी बड़ाई से सदा रोकते थे और "सर्वशक्तिमान ईश्वर का भक्त" जैसे नामों के इस्तेमाल का अपने अनुयायियों को सलाह देते थे.
ज) हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ने सदा उचित रूप से अल्लाह की पूजा किया और अपने परदादा इब्राहीम और इस्माइल-शांति हो उन पर-से उनतक सही तरीके से पहुंचे थे उसी पर चलते थे. यहाँ कुरान के दूसरे अध्याय से कुछ आयतें हैं इन्हें ज़रा बारीकी और ध्यान से पढ़ें.
" وإذ ابتلى إبراهيم ربه بكلمات فأتمهن قال إني جاعلك للناس إماما قال ومن ذريتي قال لا ينال عهدي الظالمين "
और याद करो जब इब्राहीम की उसके पालनहार ने कुछ बातों में परीक्षा ली तो उसने उनको पूरा कर दिखाया, उसने कहा: मैं तुझे सारे मनुष्यों का सरदार बनानेवाला हूँ, उसने निवेदन किया : और मेरी संतान में भी , उसने कहा: जालिम लोग मेरे इस वचन के अंतर्गत नहीं आ सकते.
" وَإِذْ جَعَلْنَا الْبَيْتَ مَثَابَةً لِّلنَّاسِ وَأَمْناً وَاتَّخِذُواْ مِن مَّقَامِ إِبْرَاهِيمَ مُصَلًّى وَعَهِدْنَا إِلَى إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ أَن طَهِّرَا بَيْتِيَ لِلطَّائِفِينَ وَالْعَاكِفِينَ وَالرُّكَّعِ السُّجُودِ "
और याद करो जब हमने इस घर(काबा) को लोगों के लिये केन्द्र और शंतिस्थ्ल बनाया- और इब्राहीम के स्थल में से किसी जगह को नमाज़ की जगह बना लो , और इब्राहीम और इस्माइल को जिम्मेदार बनाया, तुम मेरे इस घर का तवाफ़ करनेवालों और एतेकाफ़ करनेवालों के लिये और रुकू और सजदा करनेवालों के लिये पाक-साफ रखो.
" وَإِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ رَبِّ اجْعَلْ هَذَا بَلَدًا آمِنًا وَارْزُقْ أَهْلَهُ مِنَ الثَّمَرَاتِ مَنْ آمَنَ مِنْهُم بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الآخِرِ قَالَ وَمَن كَفَرَ فَأُمَتِّعُهُ قَلِيلاً ثُمَّ أَضْطَرُّهُ إِلَى عَذَابِ النَّارِ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ "
"और याद करो जब इब्राहीम ने कहा: हे मेरे पालनहार! इसे शान्तिमय भू-भाग बना दे और इसके उन निवासीयों को फलों की रोज़ी दे जो उनमें से अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाएं, उसने कहा:और जो इनकार करेगा थोड़ा लाभ तो उसे भी दूँगा, फिर उसे घसीटकर आग की यातना की ओर पहुँचा दूँगा और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है."
" وَإِذْ يَرْفَعُ إِبْرَاهِيمُ الْقَوَاعِدَ مِنَ الْبَيْتِ وَإِسْمَاعِيلُ رَبَّنَا تَقَبَّلْ مِنَّا إِنَّكَ أَنتَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ "
"और याद करो जब इब्राहीम और इस्माइल इस घर की बुनयादें उठा रहे थे ,(तो उन्होंने प्रर्थना की): हे हमारे पालनहार! हमारी ओर से इसे स्वीकार कर ले ,निस्संदेह तू सुनता-जनता है."
" رَبَّنَا وَاجْعَلْنَا مُسْلِمَيْنِ لَكَ وَمِن ذُرِّيَّتِنَا أُمَّةً مُّسْلِمَةً لَّكَ وَأَرِنَا مَنَاسِكَنَا وَتُبْ عَلَيْنَا إِنَّكَ أَنتَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ "
"हे हमारे पालनहार! हम दोनों को अपना आज्ञाकारी बना और हमारी संतान में से अपना एक आज्ञाकारी समुदाय बना :और हमें हमारे इबादत के तरीक़े बता और हमारी तौबा स्वीकार कर, निस्संदेह तू तौबा स्वीकार करनेवाला, अत्यंत दयावान है".
" رَبَّنَا وَابْعَثْ فِيهِمْ رَسُولاً مِّنْهُمْ يَتْلُو عَلَيْهِمْ آيَاتِكَ وَيُعَلِّمُهُمُ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَيُزَكِّيهِمْ إِنَّكَ أَنتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ "
"हे हमारे पालनहार! उनमें उन्हीं में से एक ऐसा रसूल उठा जो उन्हें तेरी आयतें सुनाए और उनको पुस्तक और बुद्धिशिक्षा दे और उन (की आत्मा) को विकसित करे.निस्संदेह तू प्रभुत्वशाली तत्त्वदर्शी है."
" وَمَن يَرْغَبُ عَن مِّلَّةِ إِبْرَاهِيمَ إِلاَّ مَن سَفِهَ نَفْسَهُ وَلَقَدِ اصْطَفَيْنَاهُ فِي الدُّنْيَا وَإِنَّهُ فِي الآخِرَةِ لَمِنَ الصَّالِحِينَ "
"कौन है जो इब्राहीम के पंथ से मुँह मोड़े सिवाय उसके जिसने स्वयं को पतित कर लिया? और उसे तो हमने संसार में चुन लिया था और निस्संदेह अन्तिम दिन में उसकी गणना योग्य लोगों में होगी."
" إِذْ قَالَ لَهُ رَبُّهُ أَسْلِمْ قَالَ أَسْلَمْتُ لِرَبِّ الْعَالَمِينَ "
"क्योंकि जब उससे उसके पालनहार ने कहा:मुस्लीम(आज्ञाकारी) हो जा , उसने कहा:मैं सारे संसार के पालनहार-मालिक का आज्ञाकारी होगया".
" وَوَصَّى بِهَا إِبْرَاهِيمُ بَنِيهِ وَيَعْقُوبُ يَا بَنِيَّ إِنَّ اللَّهَ اصْطَفَى لَكُمُ الدِّينَ فَلاَ تَمُوتُنَّ إِلاَّ وَأَنتُم مُّسْلِمُونَ ."
"और इसी की वसीयत इब्राहीम ने अपने बेटों को की और याकूब ने भी(अपनी संतान को की) कि:हे मेरे बेटो! अल्लाह ने तुम्हारे लिये यही दीन(धर्म) चुना है, तो इस्लाम(ईश-आज्ञापालन)के अतिरिक्त किसी और दशा में तुम्हारीमृत्युन हो." [पवित्र कुरान 2:124-132]
झ)हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ने बिल्कुल उसी तरीक़े पर इबादत किया जैसे उनसे पहले के ईश्दुतों ने किया :
नमाज़ के बीच में सज्दः यामाथा को धरती पर रखना और नमाज़ में यरूशलेम की ओर चेहरा रखना और वह अपने अनुयायियों को भी ऐसा ही करने का आदेश देते थे (यहाँ तक कि अल्लाह ने अपने दूत गेब्रियल को इशवानी के साथ निचे उतारा और नमाज़ में चेहरा काबा की ओर करने का आदेश दिया जैसा कि पवित्र कुरान में वर्णित है)
ञ) हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ने हर प्रकार का अधिकार का निर्माण कियाविशेष रूप से परिवार के सभी सदस्यों से सबंधित
के और माता पिता, शिशु लड़कियों, अनाथ लड़कियों के लिए अधिकार को स्थापित किया, और निश्चित रूप से पत्नियों के लिए.
यह पवित्र कुरानसे यह स्पष्ट है कि हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ने अपने अनुयायियों को माता पिता के साथ दया और सम्मान का आदेश दिया . बल्कि उन्हेंनफ्रत से"ऊंह" भी कहने से रोका है:
पवित्र कुरान में है:
" وقضى ربك ألا تعبدوا إلا إياه وبالوالدين إحسانا إما يبلغن عندك الكبر أحدهما أو كلاهما فلا تقل لهما أف ولا تنهرهما وقل لهما قولا كريما. " (الإسراء: 23).
"और पालनहार ने फ़ैसला कर दिया है कि उसके सिवा किसी की पूजा न करो और माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो, यदि उनमें से कोई एक या दोनों ही तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहूँच जाएँ तो उन्हें "उंह" तक न कहो और न उन्हें झिड़को, बल्कि उनसे शिष्टापूर्वक बात करो.[पवित्र कुरान 17:23]
ट)वास्तव में हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ही अनाथों के रक्षक थे और नवजात बच्चों तक के अधिकार को सही धारे पर स्थापित किया उन्होंने अनाथों की देखभाल और गरीबों को भोजन देने का आदेश दिया बल्कि इसे स्वर्ग में प्रवेश का माध्यम बताया, और यदि किसी ने इनके अधिकारों को हड़प किया तो वह कभी स्वर्ग में फटकेगा तक नहीं. पवित्र कुरान में है.
"الذين ينفقون أموالهم بالليل والنهار سرا وعلانية فلهم أجرهم عند ربهم ولا خوف عليهم ولا هم يحزنون". (البقرة: 274).
"जो लोग अपने धन रात-दिन छिपे और खुले ख़र्च करें , उनका बदला तो उनके पालनहार के पास है, और न उन्हें कोई भय है और न वे शोकाकुल होंगे."(पवित्र कुरान:२: २७४)
उन्होंने नवजात लड़कियों की हत्या को निषिद्ध कर दिया , जैसा कि अरब में अज्ञान के समय के परंपराओं में था. पवित्र कुरान में है:
”وَإِذَا الْمَوْؤُودَةُ سُئِلَتْ بِأَيِّ ذَنبٍ قُتِلَتْ . "(التكوير: 8 )
"और जब जीवित गाड़ी गई लड़की से पूछा जाएगा कि उसकी हत्या किस पाप के कारण की गई?[पवित्र कुरान: 81:8]
ठ) हज़रत पैगंबर-शांति और आशीवार्द हो उन पर- ने पुरुषों को आदेश दिया कि उनकी इच्छा के विरुद्ध महिलाओं के वारिस न बनें और उनसे उनकी सहमति और मर्ज़ी के बिना शादी न करें और उनके धन को हाथ न लगाएं बल्कि उनकी वित्तीय स्थिति को सुधारने पर ज़ोर दिया है. पवित्र कुरान में है:
" يا أيها الذين آمنوا لا يحل لكم أن ترثوا النساء كرها ولا تعضلوهن لتذهبوا ببعض ما آتيتموهن إلا أن ياتين بفاحشة مبينة وعاشروهن بالمعروف فإن كرهتموهن فعسى أن تكرهوا شيئا ويجعل الله فيه خيرا كثيرا. " (النساء:19).
"हे ईमान लेन
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Mon Jan 12, 2015 4:12 am by Hossam Masri
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Mon Jan 12, 2015 4:00 am by Hossam Masri
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Mon Jan 12, 2015 3:59 am by Hossam Masri
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Mon Jan 12, 2015 3:58 am by Hossam Masri
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Sun Jan 11, 2015 12:43 pm by Hossam Masri
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Sun Jan 11, 2015 12:13 pm by Hossam Masri
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Sat Jan 10, 2015 8:10 am by Hossam Masri
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Sat Jan 10, 2015 8:07 am by Hossam Masri
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Tue Jan 06, 2015 4:10 am by Hossam Masri
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Sun Jan 04, 2015 2:38 am by Hossam Masri
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Fri Jan 02, 2015 7:06 pm by Hossam Masri
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Fri Jan 02, 2015 7:03 pm by Hossam Masri
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Fri Jan 02, 2015 7:01 pm by Hossam Masri
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